देहरादून।देहरादून का यह हादसा इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश में जहरीली शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। राज्य शराब माफिया की गिरफ्त में है। सवाल है कि आखिर सरकार शराब माफिया के आगे लाचार क्यों है?उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जहरीली शराब से हुई मौतों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि राज्य में सरकार की नाक के नीचे अवैध शराब का कारोबार बेरोकटोक जारी है। ज्यादा हैरानी तो इस बात से है कि जहरीली शराब से ये मौतें इस बार राज्य की राजधानी में हुई हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब राजधानी में खुलेआम जहरीली शराब बिक रही है तो प्रदेश के और हिस्सों में यह धंधा कितने बड़े पैमाने पर चल रहा होगा। इस साल फरवरी में उत्तराखंड और इससे सटे उत्तर प्रदेश के सहारनपुर क्षेत्र में जहरीली शराब से बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। तब सरकार की नींद टूटी थी और कई जगह छापेमारी करने और जहरीली शराब बेचने वालों के खिलाफ अभियान चला था। लेकिन अब फिर जहरीली शराब का कहर बरपा है और गरीब तबके के लोग ही मरे हैं। ऐसे में क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि जहरीली शराब बेचने वालों के खिलाफ अभियान दिखावे की कार्रवाई से ज्यादा कुछ नहीं था। अगर तब सरकार ने सख्त कदम उठाए थे तो निश्चित रूप से जहरीली शराब बिकनी बंद हो जानी चाहिए थी। पर ऐसा नहीं हुआ।
देहरादून का यह हादसा इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश में जहरीली शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। राज्य शराब माफिया की गिरफ्त में है। सवाल है कि आखिर सरकार शराब माफिया के आगे लाचार क्यों है? जिस बस्ती में यह हादसा हुआ है वहां के लोग बता रहे हैं कि पुलिस वाले अवैध शराब बेचने वालों से पैसा वसूलते थे। जब-जब इसकी शिकायत की गई, पुलिस ने कार्रवाई करने के बजाय उसकी अनदेखी की। इसमें कोई शक नहीं कि प्रशासन, पुलिस और आबकारी महकमे की शराब कारोबारियों के साथ मिलीभगत से ही जहरीली शराब बनाने-बेचने का धंधा चलता रहता है। जब भी इस तरह की घटनाएं होती हैं तो दिखावे के लिए कुछ पुलिसकर्मी निलंबित कर दिए जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। फरवरी में जहरीली शराब से हुई मौतों से सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा।